ख़्वाबों का कोई सिरा नहीं है है भी तो मुझे पता नहीं है ता-दूर ग़ुबार उड़ रहा है होने को तो कुछ हुआ नहीं है फिर रात की सरज़मीं है मैं हूँ और हाथ में फिर दिया नहीं है फिर रात की सरज़मीं है मैं हूँ और हाथ में फिर दिया नहीं है इक ख़्वाब की लौ है चश्म-ए-तर में तस्वीर में कुछ नया नहीं है बेदार हैं शहर की हवाएँ वो शख़्स अभी गया नहीं है सहरा में घटा बरस रही है ये वक़्त लेकिन मरा नहीं है साँसों में कसक है अजनबी सी उस ने तो अभी छुआ नहीं है मैं वक़्त से चल रही हूँ आगे ता-दूर कोई सदा नहीं है सरशार हूँ शेर कह के 'नैना' कुछ और अगर सिला नहीं है