ख़्वाबों की अंजुमन में उजाला न हो सका चाहा था फिर भी आज सवेरा न हो सका एहसास की रगों से टपकता रहा लहू हम को किसी से प्यार दोबारा न हो सका आँसू मिरे मिज़ाज का हिस्सा तो बन गए झुकना किसी भी तौर गवारा न हो सका मैं शम्-ए-इंतिज़ार फ़रोज़ाँ किए रही चाहत का उस तरफ़ से इशारा न हो सका मरने की आरज़ू में शब-ओ-रोज़ जल-बुझे 'नुसरत' का ज़िंदगी से किनारा न हो सका