ख़्वाह दिल से मुझे न चाहे वो ज़ाहिरी वज़्अ' तो निबाहे वो गरचे मैं क्या मिरी वफ़ाएँ क्या उस का एहसान अगर सराहे वो ताकि बिल्कुल न भूल पाए कोई मिलते रहते हैं गाहे गाहे वो एक ही बात है मोहब्बत में चाहे मैं जीत जाऊँ चाहे वो चुन सकोगे न कोई सम्त 'शुऊर' राह में आएँगे दो-राहे वो