ख़्वाहिश-ए-बाल-ओ-पर में रहता है मुतमइन कौन घर में रहता है लम्हा लम्हा सफ़र में रहता है चाँद कब किस नगर में रहता है जान-ए-जाँ आज-कल तिरा क़ातिल कूचा-ए-चारा-गर में रहता है भूल जाऊँ उसे मगर कैसे वो जो मेरी नज़र में रहता है हम तो सहरा-नवर्द हैं 'मंज़र' ख़ौफ़ दीवार-ओ-दर में रहता है