ख़्वाहिश-ए-दीद के आँखों में उजाले ले कर ढूँढता हूँ मैं तुझे पाँव में छाले ले कर ज़र्द पड़ जाते हैं ताबिंदा सितारों के बदन चाँद जिस वक़्त निकलता है उजाले ले कर टूट जाएगा ये तेरा भी तकब्बुर सूरज रात जब आएगी तारीक हवाले ले कर ज़िंदगी उस को बचाना हो तो यूँ बचती है भेज देता है ख़ुदा मकड़ियाँ जाले ले कर कोई सुक़रात नहीं मैं जो ख़ुशी से पी लूँ आप क्यूँ आए हैं ये ज़हर के प्याले ले कर