ख़्वाहिश-ए-क़त्ल-ए-आम करने लगे अपना जीना हराम करने लगे मंज़िलें दूर ही रहीं उन से जो मुसाफ़िर क़याम करने लगे वो ये समझे कि कुछ ज़रूरत है हम उन्हें जब सलाम करने लगे इन अँधेरों के हौसले देखो रौशनी ज़ेर-ए-दाम करने लगे इश्क़ छूटा तो होश में आए हम भी अब काम-धाम करने लगे होश उड़ने लगे हैं ख़ारों के फूल जब से कलाम करने लगे ज़िंदगी की सलीब टूट गई मौत का इंतिज़ाम करने लगे ज़िंदगी के उदास दरिया में कुछ समुंदर क़याम करने लगे ये है मेराज-ए-तिश्नगी 'शाकिर' चढ़ते दरिया सलाम करने लगे