ख़याल यार मुझे जब लहू रुलाने लगा तो ज़ख़्म ज़ख़्म मिरे दिल का मुस्कुराने लगा मुझे ख़ुद अपनी वफ़ा पर भी ए'तिमाद नहीं मैं क्यूँ तुम्हारी मोहब्बत को आज़माने लगा किया है याद मुझे मेरे बा'द दुनिया ने हुआ जो ग़र्क़ तो साहिल क़रीब आने लगा न छीन मुझ से सुरूर-ए-शब-ए-फ़िराक़ न छीन क़रार-ए-दिल को न दस्तक के ताज़ियाने लगा मिसाल अपनी तो है इस दरख़्त की कि जिसे लगा जो संग तो बदले में फल गिराने लगा हर एक सम्त रिया की तमाज़तें हैं 'असद' जो हो सके तो मोहब्बत के शामियाने लगा