ख़याल-ए-गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर में रहता हूँ मैं घर में रहते हुए भी सफ़र में रहता हूँ मैं अपने जिस्म पे तन्क़ीद कर नहीं सकता मगर ये सच है कि मिट्टी के घर में रहता हूँ मुझे क़याम कहाँ अब मुझे तलाश न कर है मेरा नाम मुसाफ़िर सफ़र में रहता हूँ मैं एक दर्द सही फिर भी मिट नहीं सकता सबब ये है कि दिल-ए-चारा-गर में रहता हूँ मुझी से माँगे है सैलाब रास्ता 'सौलत' ये जानता है कि मिट्टी के घर में रहता हूँ