ख़याल-ओ-ख़्वाब की दुनिया से हम गुज़र भी गए जहाँ ठहरना था हम को वहाँ ठहर भी गए हमारे साथ रहे ज़िंदगी के हंगामे जहाँ जहाँ से भी गुज़रे जिधर जिधर भी गए तिरे ख़याल का दरिया उतर न पाया मगर तिरे ख़याल के दरिया में हम उतर भी गए ज़माना लाख हमारी मुख़ालिफ़त में रहा जो काम करना था हम को वो काम कर भी गए मोहब्बतों में भी लाज़िम है ए'तिदाल का रंग ख़ुलूस हद से बढ़ा जब तो लोग डर भी गए तुम्हारा नाम इसी वास्ते तो ज़िंदा है तुम्हारे नाम पे मरना था जिन को मर भी गए ग़म-ए-ज़ियाँ के सिवा कुछ नहीं है मंज़िल पर सफ़र का लुत्फ़ गया और हम-सफ़र भी गए हम ऐसे लोग मुनव्वर कहाँ से आएँगे जो पस्तियों में रहे और फ़राज़ पर भी गए