खेत शादाब हैं गुलशन में भी रानाई है एक मुद्दत पे दुआओं की पज़ीराई है निकहत-ओ-रंग का पैग़ाम सबा लाई है बा-वफ़ा कितनी मेरे देश की पुर्वाई है चाँदनी बहर-ए-तख़य्युल में उतर आई है हजला-ए-नूर मेरी याद की गहराई है लाला-ओ-गुल की क़सम अज़मत-ए-सहरा की क़सम अब्र-ए-रहमत का हर इक शख़्स तमन्नाई है शुक्र है जज़्बा-ए-उल्फ़त के थपेड़े खा कर कश्ती-ए-अज़्म अब तूफ़ाँ से निकल आई है कट गई रात मिरी सई-ए-मुसलसल के तुफ़ैल रौशनी सुब्ह-ए-दरख़्शाँ की ख़बर लाई है दुश्मन-ए-जाँ भी तिरी बात के क़ातिल हैं 'जमील' तेरे हर शे'र में अख़्लाक़ है सच्चाई है