खिड़की से उस सनम का जो मुखड़ा नज़र पड़ा ताक़-ए-हरम से जल्वा ख़ुदा का नज़र पड़ा सात आसमाँ की सैर है पर्दों में आँख के आँखें खुलीं तो तुर्फ़ा तमाशा नज़र पड़ा देखा है आँख ने तिरा जी चाहे पूछ देख ऐ दिल मैं क्या कहूँ मुझे क्या क्या नज़र पड़ा इंसान उन को देख रुके क्यूँकि आँख से हूर ओ परी को जिन का न साया नज़र पड़ा मैं मस्त हूँ 'मज़ाक़' मय-ए-इंतिज़ार से साक़ी न मय न जाम न मीना नज़र पड़ा