ख़िज़ाँ के दौर में खिलती बहार मेरे लिए ख़ुदा ने भेजा है इक ग़म-गुसार मेरे लिए वो कह रहा है मैं उस को 'अज़ीज़ हूँ इतनी करेगा वक़्फ़ वो लैल-ओ-नहार मेरे लिए कठिन सफ़र ये अगर उस के साथ गुज़रे तो ये संग-ओ-ख़िश्त भी हैं लाला-ज़ार मेरे लिए कड़ा है वक़्त तो नज़रें चुरा के गुज़रा है जो कर रहा था ज़माना निसार मेरे लिए सुना है नज़्में भी लिखता है अब जुदाई पर कि हो रहा है बड़ा दिल-फ़िगार मेरे लिए दर-ए-बतूल की अदना सी इक कनीज़ हूँ मैं यही हवाला है सद-इफ़्तिख़ार मेरे लिए