खो गए जान कहाँ प्यार लुटाने वाले याद आते हैं बहुत लोग पुराने वाले इतनी महँगाई में बचता ही नहीं कुछ साहिब नौकरी एक है और चार हैं खाने वाले जिन को पाया था सुकूँ चैन गँवा कर हम ने सारे तम्ग़े हैं महज़ रूम सजाने वाले कुछ भी आसानी से हासिल नहीं होता है यहाँ थे क़तारों में खड़े सुब्ह से पाने वाले इक तसल्ली के सिवा और न दे पाए थे कुछ आज भी चुभते हैं आँसू मुझे शाने वाले खोखले रस्मों रिवाजों ने जताया अक्सर हाथियों के ही नहीं दाँत दिखाने वाले कैसा इंसाफ़ किया करता है ऊपर वाला भीगते रहते हैं ख़ुद छावनी छाने वाले