खोए हुए पलों की कोई बात भी तो हो वो मिल गया है उस से मुलाक़ात भी तो हो बर्बाद मैं हुआ तो ये बोला अमीर-ए-शहर कॉफ़ी नहीं है इतना, फ़ना ज़ात भी तो हो दुनिया की मुझ पे लाख नवाज़िश सही मगर मैरी तरक़्क़ियों में तिरा हात भी तो हो मिलती हैं गोर याँ तो सर-ए-राह भी मगर पनघट हो गागरी हो वो देहात भी तो हो हारे तो लाज़िमन उसे कोई पनाह दे हम से लड़े जो उस की ये औक़ात भी तो हो कटती है शब विसाल की पलकें झपकते ही जिस की सुब्ह न हो कभी वो रात भी तो हो लफ़्ज़ों के हेर-फेर से बनती नहीं ग़ज़ल शेरों में थोड़ी गर्मी-ए-जज़्बात भी तो हो