ख़ुद अपने वजूद अपनी ही हस्ती में नहीं हूँ मैं आप मिरी ज़ात की मिट्टी में नहीं हूँ जो चाक पे रक्खा है वो मिट्टी का बदन है मैं रूह-ए-अबद हूँ किसी चक्की में नहीं हूँ दुनियावी झमेले से कहीं दूर बहुत दूर मैं हूँ भी तो इस जिस्म की बस्ती में नहीं हूँ मत माप दरीचे से तू इस चर्ख़ की वुसअ'त दुनिया मैं तिरी तंग-निगाही में नहीं हूँ कोई न मुझे हर्फ़ के साँचों में तलाशे लफ़्ज़ों से नदारद हूँ मआ'नी में नहीं हूँ