ख़ुदा दुनिया इशारों से रिहा कर By Ghazal << क्या होता है ख़ुद से मिल ... कई चाँद रहे बरसों मुझ में... >> ख़ुदा दुनिया इशारों से रिहा कर घुटन बढ़ने लगी है कुछ कहा कर कहीं पहले कभी हम भी ख़ुदा थे हमें ये भी लगा दुनिया में आ कर तवाज़ुन का अलम-बरदार है तू सभी के पैदा होने पर मरा कर ज़मीं की भूक बढ़ती जा रही है फ़रिश्ते सो चुके हैं खाना खा कर Share on: