खुल गई खिड़की अचानक फिर भी मुझ को डर न था अब मिरी आँखों में कोई रात का मंज़र न था बह रहा था चार सू इक रेत का दरिया मगर जिस जगह पर मैं खड़ा था रास्ता बंजर न था शहर के सारे मकाँ लगने लगे हैं एक से जिस मकाँ में भी गया देखा मेरा वो घर न था याद जब करने लगा तब रंग-ए-मौसम भी खुला लोग कहते थे कि तुग़्यानी भरा सागर न था रास्ते 'प्रेमी' सभी क्यूँ खो गए गुम हो गए इस से पहले इतनी गहरी धुँद का मंज़र न था