खुल के बरसना और बरस कर फिर खुल जाना देखा है हम से पूछो!! उन आँखों का एक ज़माना देखा है तुम ने कैसे मान लिया वो थक कर बैठ गया होगा तुम ने तो ख़ुद अपनी आँखों से वो दीवाना देखा है मंज़िल तक पहुँचें कि न पहुँचें राह मगर अपनी होगी तू रहने दे वाइज़ तेरा राह बताना देखा है धूल का इक ज़र्रा न उड़े आवाज़ करे परछाईं भी मौत भी आ कर मरती नहीं थी वो वीराना देखा है गुलशन से हम सीख न पाए वक़्ती ख़ुशियों को जीना जबकि हम ने फ़स्ल-ए-गुल का आना जाना देखा है दिल तो सादा है तेरी हर बात को सच्चा मानता है अक़्ल ने बातें करते तेरा आँख चुराना देखा है लफ़्ज़ दवा है लेकिन इस के साथ ही कुछ परहेज़ भी है लफ़्ज़ के बाइस पल में खोना पल में पाना देखा है