खुला न मुझ से तबीअत का था बहुत गहरा हज़ार उस से रहा राब्ता बहुत गहरा बस इस क़दर कि ये हिजरत की उम्र कट जाए न मुझ ग़रीब से रख सिलसिला बहुत गहरा सब अपने आईने उस ने मुझी को सौंप दिए उसे शिकस्त का एहसास था बहुत गहरा मुझे तिलिस्म समझता था वो सराबों का बढ़ा जो आगे समुंदर मिला बहुत गहरा शदीद प्यास के आलम में डूबने से बचा क़दह तो क्या मुझे क़तरा लगा बहुत गहरा तू उस की ज़द में जो आया तो डूब जाएगा ब-क़द्र-ए-आब है हर आइना बहुत गहरा मिलेंगे राह में तुझ को चराग़ जलते हुए कहीं कहीं है मिरा नक़्श-ए-पा बहुत गहरा तलाश-ए-मअ'नी-ए-मक़्सूद इतनी सहल न थी मैं लफ़्ज़ लफ़्ज़ उतरता गया बहुत गहरा जो बात जान-ए-सुख़न थी वही रही ओझल लिया तो उस ने मिरा जाएज़ा बहुत गहरा क़दीम होते हुए मुझ से भी जदीद है वो असर है उस पे मिरे दौर का बहुत गहरा 'फ़ज़ा' हमें तो है काफ़ी यही ख़ुमार-ए-वजूद है बे-शराब भी हासिल नशा बहुत गहरा
This is a great मुझे माफ करना शायरी. True lovers of shayari will love this खुली शायरी. Shayari is the most beautiful way to express yourself and this तबीयत शायरी is truly a work of art. For some people shayari is the most enjoyable thing in life and they absolutely adore बहुत अच्छी शायरी. You can click on the More button to get more गहरा प्यार शायरी. Please share if you liked it.