खुले दिलों से मिले फ़ासला भी रखते रहे तमाम उम्र अजब लोग मुझ से उलझे रहे हनूत तितलियाँ शो-केस में नज़र आईं शरीर बच्चे घरों में भी सहमे सहमे रहे अब आइना भी मिज़ाजों की बात करता है बिखर गए हैं वो चेहरे जो अक्स बनते रहे मैं आने वाले दिनों की ज़बान जानता था इसी लिए मिरी ग़ज़लों में फूल खिलते रहे दरख़्त कट गया लेकिन वो राब्ते 'नासिर' तमाम रात परिंदे ज़मीं पे बैठे रहे