खुली और बंद आँखों से उसे तकता रहा मैं भी तिरी दुनिया के पीछे भागता फिरता रहा मैं भी मिरी आवाज़ पिछली रात तुझ तक कैसे आ पाती किसी गहरे कुएँ में रात भर सोता रहा मैं भी ब-ज़ाहिर देखती आँखें ब-ज़ाहिर जागती रूहें ब-ज़ाहिर इन सभों के साथ ही जीता रहा मैं भी मैं हूँ इस कारसाज़-ए-बे-कसाँ की दस्तरस में यूँ वो जिस साँचे में भी ढाला किया ढलता रहा मैं भी बदन मल्बूस में शोला सा इक लर्ज़ां क़रीन-ए-जाँ दिल-ए-ख़ाशाक भी शोला हुआ जलता रहा मैं भी है जिस राह-ए-यक़ीं पर गामज़न पा-ए-ख़िरद हर-दम उसी राह-ए-गुमाँ पर मुद्दतों चलता रहा मैं भी