खुलती है चाँदनी जहाँ वो कोई बाम और है दिल को जहाँ सुकूँ मिले वो तो मक़ाम और है कहती है रूह जिस्म से शायद तुझे ख़बर नहीं मेरा मक़ाम तू नहीं मेरा मक़ाम और है सहमी हुई ये ख़ामुशी होंटों की तेरे कपकपी कहती है साफ़ नामा-बर कुछ तो पयाम और है शिकवा-ए-बे-रुख़ी पे वो कहने लगे कि देखिए नज़रों की बात और है दिल का सलाम और है पीते रहे हैं उम्र-भर लेकिन वही है तिश्नगी जिस का नशा है जावेदाँ वो कोई जाम और है वक़्त-ए-गुनाह देर तक कहता है मुझ से दिल मिरा कार-ए-हयात-ए-इश्क़ में तेरा तो काम और है हर शय पे इस जहान की पर्दा है इक फ़रेब का कहते हैं सब 'कँवल' मुझे गो मेरा नाम और है