ख़ुशबू सा कोई दिन तो सितारा सी कोई शाम भेजो तो कभी नूर का धारा सी कोई शाम पोरों से निकल कर ये कहाँ जाती है जाने आती ही नहीं हाथ में पारा सी कोई शाम यादों की हवाओं में बड़ा ज़ोर था शायद है बिखरी पड़ी पाँव में गारा सी कोई शाम रहती है मिरे कमरे में कुइ तीरा उदासी ऐ शो'ला बदन भेज शरारा सी कोई शाम इस दिन के समुंदर में जो शल होते हैं बाज़ू अफ़्लाक से आती है किनारा सी कोई शाम हम रोज़ ही दफ़नाते हैं बुझता हुआ सूरज फिर ढूँडने जाते हैं सहारा सी कोई शाम