वो कम-शुऊ'र है फिर भी कमाल करता है हमारे लफ़्ज़ों में हम से सवाल करता है करम किसी का सँभाले हुए है राहों में ये ख़ारज़ार वगर्ना निढाल करता है उसी के सर रहा इल्ज़ाम फ़ित्ना-साज़ी का जो अम्न-रुत में ख़लल को बहाल करता है वो पत्थरों में भी देता है रिज़्क़ कीड़ों को कमाल वाला है वो हर कमाल करता है मुअज़्ज़िनों के लबों से अज़ान सुनते ही परिंदा हम्द-ओ-सना डाल डाल करता है 'नवाब' के कोई तर्ज़-ए-सुख़न पे ग़ौर करे हर एक शे'र में ख़ुद से मक़ाल करता है