की जाए छुप के ऐसी यहाँ ग़ाएबाना बात सरहद के पार पहुँचे न ये काफ़िराना बात महफ़िल यहाँ सजी है मगर तू नहीं यहाँ तेरी भी काश होती कोई मो'जिज़ाना बात उस को कोई शग़फ़ ही कहाँ शाइ'री से है महफ़िल में कैसे करते रहे शाइ'राना बात देखो तो एक आम सा कम-फ़हम सा वो है दोहरा रहा है आज भी उस की ज़माना बात हासिल तो कुछ न होगा तुम्हें मार-पीट से करते हैं सारे मिल के कोई दोस्ताना बात अक्सर मैं तुझ से बात यही कहता हूँ 'सहर' ग़ुस्से को छोड़ कर कोई अब आजिज़ाना बात