की शिकायत न कोई शिकवा-ए-बेदाद किया क्या कहे वो कि जिसे दोस्त ने बर्बाद किया क्या ख़बर किस की दुआ से वो हमें मिल जाए इक परिंदा इसी उम्मीद पे आज़ाद किया हाए वो शख़्स जो करता था हमारी ख़्वाहिश रक़्स-ए-तन्हाई में आज उस को बहुत याद किया मस्लहत-कोश ज़माने में भी सच बोल सके हम ने इस शहर में वो आइना ईजाद किया मेरा वो घर जो मिरा घर ही नहीं था 'रूही' मैं ने इस घर को अजब नाज़ से आबाद किया