किबरियाई की अदा तुझ में है गरचे तू बुत है ख़ुदा तुझ में है शोख़ी ओ नाज़-ओ-अदा तुझ में है या ये इक क़हर-ए-ख़ुदा तुझ में है मुँह छुपाता है तू आईने से किस क़दर शर्म-ओ-हया तुझ में है ख़ैर-बाशद कि मिरे ख़ून की सी सुर्ख़ी ऐ रंग-ए-हिना तुझ में है पूछ लेता है तू औरों से मुझे बारे इतनी तो वफ़ा तुझ में है गुल है बेहाल ये किस गेसू की निकहत ऐ बाद-ए-सबा तुझ में है दिल को खींचे है तिरी ज़ुल्फ़-ए-सियाह सेहर जादू की बला तुझ में है हो न ऐ ख़ाक के पुतले मग़रूर इस पे तू ये जो हवा तुझ में है सब ये नक़्शा है तिरा आरयती इक ज़रा सोच तो क्या तुझ में है तू जो यूँ गुल को बना देती है कुछ तो ऐ बाद-ए-सबा तुझ में है 'मुसहफ़ी' से तू मिला दे उस को ये असर दस्त-ए-दुआ तुझ में है