किस बात पे गिर गए नज़र से पूछे तो सदफ़ सफ़-ए-गुहर से ऐ दश्त-नवर्द-ए-दिल पलट भी ऐ ख़ाक-ब-सर निकल भी घर से हम ग़र्क़-ए-जमाल क्या बताएँ किस आन गुज़र गया वो सर से हर चंद ग़ुबार-ए-राह थे हम निकले न हिसार-ए-रहगुज़र से दस्तक की तरह जो उभरे 'ख़ालिद' किस धुन में पलट गए थे दर से