किस क़दर दिलरुबा-नुमा है दिल ख़ाना-ए-ग़ैर हो गया है दिल हर घड़ी क्यूँ न ज़लज़ले में रहे मशहद-ए-हसरत-ओ-वफ़ा है दिल मौत भी सहल कुछ नहीं अपनी किस लिए ताक़त-आज़मा है दिल मस्लहत इस में हो न कोई काश दुश्मन-ए-जान हो गया है दिल सब से लग चलने की हुई है खो किस क़दर सर्फ़-ए-आश्ना है दिल शैख़-ए-सनआँ का याद है क़िस्सा सख़्त काफ़िर बुरी बला है दिल अपनी हालत में मुब्तला हूँ आप दिल-रुबा जाँ है जाँ-रुबा है दिल बलबे वामांदगी की तेज़ रवी जैसे जाने पे आ गया है दिल किस जफ़ा-कार की वफ़ा है जाँ किस सितम-कश का मुद्दआ' है दिल तेरी उल्फ़त का नक़्द दाग़-ए-जिगर मेरी हसरत का ख़ूँ-बहा है दिल कहिए किस से लगा लिया लग्गा ऐ 'क़लक़' क्यूँ के लग चला है दिल