किस के ख़याल ने मुझे शोरीदा कर दिया तन्हा-शबी को और भी संजीदा कर दिया एहसास-ए-ना-रसाई की बंजर ज़मीन को किस के ख़याल-ए-सब्ज़ ने बालीदा कर दिया कल हम ने तश्त-ए-बाम पे शब-ख़ून मार कर बिस्तर उचटती नींद का ख़्वाबीदा कर दिया बीते ग़मों को आज की तल्ख़ी में घोल कर मुस्तक़बिल-ए-हयात को लग़्जीदा कर दिया हर रोज़ की नई नई ईजाद ने 'हनीफ़' हर मादन-ए-क़दीम को ज़ोलीदा कर दिया