किस की चश्म-ए-मस्त याद आती रही By Ghazal << नए नैरंग दिखलाता है ये चर... बुझाएँ प्यास कहाँ जा के त... >> किस की चश्म-ए-मस्त याद आती रही नींद आँखों से मिरी जाती रही दिल तो शौक़-ए-दीद में तड़पा किया आँख ही कम-बख़्त शरमाती रही ज़िंदगी से हम रहे ना-आश्ना साँस गो आती रही जाती रही उम्र-भर 'नाज़िर' रहे सहरा-नवर्द बज़्म-ए-गुलशन गरचे याद आती रही Share on: