किस मशक़्क़त से मुझे जिस्म उठाना पड़ा है शाम होते ही तिरे शहर से जाना पड़ा है मैं तुझे हँसता हुआ देख के ये भूल गया कि मिरे चारों तरफ़ रोता ज़माना पड़ा है जमअ पूँजी है मिरे जिस्म में कुछ आँसुओं की ये मिरा दिल तो नहीं एक ख़ज़ाना पड़ा है देर तक बाग़ के कोने में कोई आया नहीं बात करने के लिए ख़ुद को बुलाना पड़ा है दिन ने दस्तक दी तो कोई भी नहीं जागा था आज सूरज से मुझे हाथ मिलाना पड़ा है ख़ाली जगहों की तरफ़ कर के इशारा 'क़ासिम' क्या बताते हो यहाँ मेरा निशाना पड़ा है