किस में है ये मजाल तिरी आग से परे डाले कोई धमाल तिरी आग से परे जैसे कोई चराग़ बिछड़ जाए नूर से मेरी वही मिसाल तिरी आग से परे मुझ को पराई धूप भी भड़का नहीं सकी आया नहीं उबाल तिरी आग से परे ता-उम्र तुझ अलाव को रक्खूँगा मुश्तइ'ल गुज़रे हैं कितने साल तिरी आग से परे रौशन है शम्अ'-गाह-ए-बदन में चहार-सू बुझने का एहतिमाल तिरी आग से परे मिलता नहीं किसी से मिरी आग का मिज़ाज रहता हूँ पुर-मलाल तिरी आग से परे देता है कौन आग पराए चराग़ को जलना हुआ मुहाल तिरी आग से परे अब जा के मेरी राख से चिंगारियाँ तलाश ये इश्क़ था वबाल तिरी आग से परे फिरता हूँ सहन-ए-दश्त में आतश-बजाँ मगर मुझ पे रहा ज़वाल तिरी आग से परे मुझ को धुएँ की धुंद ने धुँदला के रख दिया आएगा क्यों जमाल तिरी आग से परे तारीख़ कह रही है नई पौद के 'मुनीर' कच्चे हैं ख़द्द-ओ-ख़ाल तिरी आग से परे