किस ने कहा आप से मेरी मुसीबत है क्या अब ये नदामत है क्यूँ उस की ज़रूरत है क्या अब ये तवज्जोह है क्यूँ मेरे शब-ओ-रोज़ पर अपने शब-ओ-रोज़ से आप को फ़ुर्सत है क्या कौन दिखाए मुझे शाम से कितनी हसीं कौन बताए मुझे वक़्त की क़ीमत है क्या इतने समाँ इतने शहर एक लगन एक लहर सात बरस चुप रहे और शिकायत है क्या इस भरे बाज़ार में हम तो अकेले 'ख़िज़ाँ' क्यूँ हैं मिरे साथ लोग ग़म कोई दौलत है क्या