किस राह पे हैं रवाँ-दवाँ हम जाएँगे ख़बर नहीं कहाँ हम इक बार फ़रेब खा गए थे अब तक हैं किसी से बद-गुमाँ हम यूँ तेरी निगाह से गिरे हैं गोया थे मता-ए-राएगाँ हम रस्तों की ख़बर न मंज़िलों की क्या जानिए आ गए कहाँ हम दिल में थीं कुछ ऐसी हसरतें भी तुझ से जो न कर सके यहाँ हम गुज़री है क़फ़स में उम्र लेकिन भूले नहीं याद आशियाँ हम हर हाल ख़ुशी उन्ही की चाही करते रहे पास-ए-दोस्ताँ हम पेश आए न-जाने क्या सफ़र में घर से तो चले हैं शादमाँ हम इक मंज़िल-ए-बे-निशाँ की धुन में 'शफ़क़त' न फिरे कहाँ कहाँ हम