किस सलीक़े से दिल जलाता है जो भी कहता हूँ मान जाता है जब उठाता हूँ बज़्म-ए-दिल से उसे आ के आँखों में बैठ जाता है जान कर मैं सदा नहीं देता आदतन दिल उसे बुलाता है दूसरों की सजाई महफ़िल में तेरा हँसना मुझे रुलाता है रूठना छोड़ ही दिया तुम ने इस तरह कौन आज़माता है इत्तीफ़ाक़न मैं याद करता हूँ इंतिक़ामन वो याद आता है मुझ को छूता है एहतियात के साथ और रस्मन गले लगाता है