किस तरह ज़ौक़-ए-बे-ख़ुदी जागे मौत सोए तो ज़िंदगी जागे हम पे एहसान-ए-अहल-ए-होश नहीं जब भी जागे हैं आप ही जागे हाँ वो जी भर के दुश्मनी कर लें क्या अजब यूँ ही दोस्ती जागे देखो नादानियाँ ही काम आईं आख़िर अंदाज़-ए-आगही जागे इस लिए हादसात आते हैं ख़्वाब-ए-ग़फ़लत से आदमी जागे फ़िक्र-ए-फ़र्दा न हो जो 'आशुफ़्ता' नहीं मुमकिन कि आदमी जागे