किसे अपना बनाएँ कोई इस क़ाबिल नहीं मिलता यहाँ पत्थर बहुत मिलते हैं लेकिन दिल नहीं मिलता मोहब्बत का सिला ईसार का हासिल नहीं मिलता वो नज़रें बार-हा मिलती हैं लेकिन दिल नहीं मिलता तुम्हारा रूठना तम्हीद थी अफ़्साना-ए-ग़म की ज़माना हो गया हम से मिज़ाज-ए-दिल नहीं मिलता जहाँ तक देखता हूँ मैं जहाँ तक मैं ने समझा है कोई तेरे सिवा तारीफ़ के क़ाबिल नहीं मिलता हरम की मंज़िलें हों या सनम-ख़ाने की राहें हों ख़ुदा मिलता नहीं जब तक मक़ाम-ए-दिल नहीं मिलता मुसाफ़िर अपनी मंज़िल पर पहुँच कर चैन पाते हैं वो मौजें सर पटकती हैं जिन्हें साहिल नहीं मिलता हम अपना ग़म लिए बैठे हैं उस बज़्म-ए-तरब में भी किसी नग़्मे से अब 'मख़मूर' साज़-ए-दिल नहीं मिलता
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