किसे बताएँ मोहब्बत में क्या किया मैं ने बना के अपना नशेमन जला दिया मैं ने ग़ुरूर-ए-इश्क़ ख़ुदी और आबरू-ए-वफ़ा इन्हें गँवा के बहुत कुछ बचा लिया मैं ने ज़माना इस को कहे मय-कशी कि मय-ख़्वारी तमाम उम्र ख़ुद अपना लहू पिया मैं ने बुझा गई थी कभी जिस को बे-रुख़ी तेरी उसी चराग़ को फिर से जिला लिया नय कल उस को देख के दिल कितना बे-क़रार हुआ समझ रहा था कि उस को भुला दिया मैं ने