किसे ग़रज़ थी जो हू की फ़ज़ा में जा मिलता तलाश कोई न करता अगर ख़ुदा मिलता यक़ीन है कि सितारे जगह से हट जाते क़दम जो हम भी उठाते तो रास्ता मिलता तिरे ख़याल में होती फ़िदा भी जान अगर तिरा ख़याल कभी तो अमल से जा मिलता सुकून-ए-क़ल्ब कोई रहगुज़र की चीज़ नहीं उठा के ले ही न आते अगर पड़ा मिलता हयात-ओ-इल्म-ओ-नशात-ओ-मलाल-ओ-दानिश-ओ-मर्ग बशर को और लिबास-ए-बशर में क्या मिलता सितम ही था जो कहीं मा'रिफ़त में खो जाते जनाब-ए-'नज्म' कहाँ आप का पता मिलता