ख़याल-ए-तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ को टालते रहिए हवा में कोई हयूला उछालते रहिए पुराने आश्ना चेहरों को याद कर कर के हुजूम-ए-ग़म में भी दिल को सँभालते रहिए तमाम उम्र यूँही कीजे हसरतों का शुमार तमाम उम्र यूँही दुख सँभालते रहिए सजा के रोज़ नई महफ़िलें नए चेहरे ज़र-ए-फ़सुर्दा-दिली को उजालते रहिए रहें न दश्त जो सहरा-नवर्दियों के लिए तो अपने सहन में पत्थर उछालते रहिए न मिल सकें जो वो यारान-ए-गुल-सिफ़त 'नाहीद' तो अपने आप को साँचों में ढालते रहिए