किसी और ग़म में इतनी ख़लिश-ए-निहाँ नहीं है ग़म-ए-दिल मिरे रफ़ीक़ो ग़म-ए-राएगाँ नहीं है कोई हम-नफ़स नहीं है कोई राज़-दाँ नहीं है फ़क़त एक दिल था अब तक सो वो मेहरबाँ नहीं है मिरी रूह की हक़ीक़त मिरे आँसुओं से पूछो मिरा मज्लिसी तबस्सुम मिरा तर्जुमाँ नहीं है किसी ज़ुल्फ़ को सदा दो किसी आँख को पुकारो बड़ी धूप पड़ रही है कोई साएबाँ नहीं है इन्हीं पत्थरों पे चल कर अगर आ सको तो आओ मिरे घर के रास्ते में कोई कहकशाँ नहीं है