किसी घर का बहुत नुक़सान होता है तो दौलत-मंद का सामान होता है दरून-ए-दिल अगर ईमान होता है तो फिर जीना बड़ा आसान होता है हथेली पर जो सर रक्खे लड़ाई में उसी की जीत का इम्कान होता है बदन का बोझ हम ढोते ही रहते हैं मरें तो ग़ैर का एहसान होता है पते की बात कह सकता है वो पागल कोई हुशियार भी अंजान होता है ग़रीबी हाथ पर रखती है खाने को अमीरों का ही दस्तर-ख़्वान होता है 'असद' आ जा कि हम को चैन आ जाए ये घर तेरे बिना सुनसान होता है