किसी ज़ालिम की जीते-जी सना-ख़्वानी नहीं होगी कि दाना हो के मुझ से ऐसी नादानी नहीं होगी दिल-ए-आबाद का सा कोई शहर आबाद क्या होगा दिल-ए-वीरान की सी कोई वीरानी कहाँ होगी अदू से क्या गिला करना कि वो मा'ज़ूर लगता है हमारी क़द्र-ओ-क़ीमत उस ने पहचानी नहीं होगी नुजूमी में नहीं लेकिन ये अंदाज़े से कहता हूँ मोहब्बत तो रहेगी पर ये अर्ज़ानी नहीं होगी इलाज-ए-अस्ल है इक आज़मूदा नुस्ख़ा दुनिया में परेशाँ तुम रहोगे तो परेशानी नहीं होगी खुला दरवाज़ा रख छोड़ा है जब जी चाहे आ जाना अजी अब हम से अपने घर की दरबानी नहीं होगी न तुम आए तो 'साबिर' क्या मज़ा आएगा महफ़िल में ग़ज़ल-ख़्वानी तो होगी पर गुल-अफ़्शानी नहीं होगी