किसी का क़हर किसी की दुआ मिले तो सही सही वो दुश्मन-ए-जाँ-आश्ना मिले तो सही अभी तो लाल हरी बत्तियों को देखते हैं मिले किसी की ख़बर सिलसिला मिले तो सही ये क़ैद है तो रिहाई भी अब ज़रूरी है किसी भी सम्त कोई रास्ता मिले तो सही ये शाम-ए-सर्द में हर सू अलाव जलते हैं सियह ख़मोशी में कोई सदा मिले तो सही क़बा-ए-जिस्म कि है तार तार नज़्र करें कभी कहीं वही पागल हवा मिले तो सही