किसी के अक्स को हैरान करना चाहता हूँ मैं संग-ओ-आइना यक-जान करना चाहता हूँ बुलंद करता हूँ दस्त-ए-दुआ' कि जैसे मैं किसी की ज़ात पर एहसान करना चाहता हूँ बहुत हक़ीर है लेकिन तुझे अता कर के मैं दिल को तख़्त-ए-सुलैमान करना चाहता हूँ मुझे ये ज़िंदगी दुश्वार भी क़ुबूल मगर कहीं कहीं इसे आसान करना चाहता हूँ मैं ऐसी कौन सी शय खो चुका हूँ जिस के एवज़ सभी को बे-सर-ओ-सामान करना चाहता हूँ