किसी के दस्त-ए-तलब को पुकारता हूँ मैं उठाओ हाथ मुझे माँग लो दुआ हूँ मैं मिरे अज़ल और अबद में नहीं है फ़स्ल कोई अभी शुरूअ' अभी ख़त्म हो गया हूँ मैं बसी है मुझ में युगों से अजीब वीरानी बदन से रूह तलक बे-कराँ ख़ला हूँ मैं न कोई आग है मुझ में न रौशनी न धुआँ किसी के ख़्वाब में जलता हुआ दिया हूँ मैं नज़र के वास्ते अपना नज़ारा काफ़ी है ख़ुद अपना अक्स हूँ ख़ुद अपना आईना हूँ मैं भटक रहा हूँ मैं बे-अंत शाह-राहों पर तुम्हारे शहर में बिल्कुल नया नया हूँ मैं