किसी के फ़ैज़-ए-क़ुर्ब से हयात अब सँवर गई नफ़स नफ़स महक उठा नज़र नज़र निखर गई निगाह-ए-नाज़ जब उठी अजीब काम कर गई जो रंग-ए-रुख़ उड़ा दिया तो दिल में रंग भर गई मिरी समझ में आ गया हर एक राज़-ए-ज़िंदगी जो दिल पे चोट पड़ गई तो दूर तक नज़र गई अब आस टूट कर मुझे सुकूँ नसीब हो गया जो शाम-ए-इंतिज़ार थी वो शाम तो गुज़र गई कली दिल-ए-तबाह की खिली न 'चिश्ती'-ए-हज़ीं ख़िज़ाँ भी आ के जा चुकी बहार भी गुज़र गई