किसी के हक़ में सही फ़ैसला हुआ तो है मिरा नहीं वो किसी शख़्स का हुआ तो है यही बहुत है कि उस ने मुझे भी मिस तो किया ये लम्स मुझ में अभी तक रचा हुआ तो है उसे मैं खुल के कभी याद कर तो सकता हूँ मुझे ख़ुशी है वो मुझ से जुदा हुआ तो है सुकूत-ए-शब ही सही मेरा हम-सफ़र लेकिन मिरे सिवा भी कोई जागता हुआ तो है घुटन कि बढ़ती चली जा रही है अंदर की तमाम ख़ुश हैं कि मौसम खुला हुआ तो है ये और बात कि मैं ज़िंदा रह गया हूँ 'नसीम' हर इक सितम मिरी जाँ पर रवा हुआ तो है