किसी के हाथ में जाम-ए-शराब आया है कि माहताब तह-ए-आफ़्ताब आया है निगाह-ए-शौक़ मुबारक नशात-ए-गुल-चीनी रुख़-ए-निगार पे रंग-ए-इताब आया है सज़ा-ए-ज़ोहद शब-ए-माहताब क्या कम थी कि रोज़-ए-अब्र भी बन के अज़ाब आया है ज़िया-ए-हुस्न ओ फ़रोग़-ए-हया की आमेज़िश शफ़क़ की गोद में या आफ़्ताब आया है तिरी निगाह की हल्की सी एक जुम्बिश से जहान-ए-शौक़ में क्या इंक़लाब आया है